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भारतीय आयुर्वेद की चरम प्राचीनता और विशालता का गर्व है। इसमें शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए प्राकृतिक उपचारों का महत्व है। आयुर्वेद में जीवन को शरीर और जीव के मिलन से समझा जाता है, जिसे ‘आयु’ कहा जाता है, और शरीर से जीव के वियोग को ‘मृत्यु’ कहा जाता है। इस शाखा के अंतर्गत, घरेलू चिकित्सा व्यक्ति को रोगों से निपटने में सहायक होती है।
घरेलू चिकित्सा: प्राकृतिक उपचारों के महत्व
आयुर्वेद के अनुसार, दीन-दुखियों की सेवा करना ही ईश्वर की प्राथमिक भक्ति है। इसी को ध्यान में रखते हुए, आयुर्वेदिक चिकित्सा के वैद्य, डॉक्टर और घरेलू चिकित्सक अपने जीवन को सफल बनाते हैं।
आयुर्वेदिक चिकित्सा में घरेलू उपचारों का महत्व इसलिए है क्योंकि ये प्राकृतिक और सस्ते होते हैं। यहां उपलब्ध हैं कई सरल घरेलू उपाय, जैसे कि अजवाइन, हींग, और नमक का उपयोग, जो आम बीमारियों का इलाज करने में मदद करते हैं। इसके साथ ही, यह चिकित्सा उपायों का उपयोग करने के लिए डॉक्टर के पास जाने की आवश्यकता नहीं होती है।
आयुर्वेदिक चिकित्सा आपको घरेलू औषधियों और प्राकृतिक उपायों के फायदे से अवगत कराता है। इसलिए, इसे अपने जीवन में शामिल करके स्वास्थ्य को संरक्षित रखने का प्रयास करें।
स्वास्थ्य का प्रश्न ?
प्राचीन समय में लोग स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण मानते थे और प्राकृतिक उपचारों का उपयोग करके अपने रोगों का इलाज किया करते थे। आज की भागदौड़ भरी जीवनशैली में, हम अक्सर अपने स्वास्थ्य को ध्यान देने के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं। लेकिन स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना हमारे समाज और अपने आप की देखभाल का अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है। अगर हम स्वस्थ रहेंगे तो हमारी सकारात्मकता और कार्यक्षमता में वृद्धि होगी, जिससे हमारा समाज और देश समृद्धि की ओर बढ़ेगा।
घरेलू चिकित्सा का प्रयोजन
घरेलू उपचार में स्वास्थ्य को पहले स्थान पर रखा गया है, और फिर रोगों का निदान तथा उपचार । यह बताता है कि मनुष्य कैसे स्वस्थ रह सकता है। आयुर्वेद में दिनचर्या और आचरण की चर्चा करके समाज का मार्गदर्शन किया गया है। साथ ही, स्वस्थ व्यक्तियों के स्वास्थ्य की रक्षा और रोगियों का इलाज भी बताया गया है। ऋषियों ने औषधियों को वही माना है जिसके अनेक गुण हों और एक रोग को ठीक करने के साथ साथ उसकी उत्पत्ति को भी रोके। यह बताया गया है कि मनुष्य कैसे सौ वर्षों तक सुखपूर्वक जी सकता है।
रोग के मूल कारण
प्रकृति ने हमारे शरीर को एक यंत्र की तरह बनाया है। इस यंत्र में पांच पुर्जे प्रमुख हैं- पृथ्वी तत्त्व, जल तत्त्व, अग्नि तत्त्व, वायु तत्त्व और आकाश तत्त्व। इसमें काम करने वाली पांच इन्द्रियां– आंख, कान, नाक, जीभ और पांच कर्मेन्द्रियां-हाथ, पैर, मुख, गुदा तथा लिंग हैं। इसके बाद मन, तन्मात्राएं, अहंकार आदि से पूर्ण जीवात्मा भी है। प्रत्येक व्यक्ति की यह इच्छा रहती है कि उसका शरीर स्वस्थ एवं बलशाली रहे क्योंकि स्वास्थ्य के बगैर जीवन व्यर्थ है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- शारीरिक स्वास्थ्य के बिना नहीं प्राप्त हो सकता। आजकल हम अपने खाने-पीने, नियम-संयम, सोने-उठने, घूमने-फिरने, व्यायाम करने आदि के बारे में बहुत कम विचार करते हैं। अनियमितता आयुर्वेद के स्वास्थ्य नियमों के प्रतिकूल है। यही अनियमितता हमें बीमार तथा अशक्त बनाती है।
प्राकृतिक नियम
स्वस्थ रहने के लिए हमें प्राकृतिक नियमों का पालन करना चाहिए। इसमें सूर्योदय से पहले उठकर, शौचालय संबंधी काम करके, तेल मालिश, व्यायाम, नहाना, दोपहर में भोजन करने के बाद आराम करना, शाम को जल्दी खाना और फिर टहलना, और लगभग 9 बजे सो जाना जैसे कार्य शामिल हैं। इन सभी कार्यों को नियमित रूप से और उचित तरीके से करना चाहिए। साथ ही, मौसम के अनुसार अनुकूलन भी जरूरी है। ऋतु के अनुसार अपनी दिनचर्या में बदलाव न करने वाला व्यक्ति बीमारियों का शिकार होता है। उदाहरण के लिए, सर्दियों में अधिक व्यायाम करना संभव है, लेकिन गर्मियों में अधिक व्यायाम हानिकारक है।
घरेलू चिकित्सा की लोकप्रियता
घरेलू चिकित्सा हजारों वर्ष पुरानी है। जब मानव जंगली अवस्था में वनों में विचरण करता था, तब भी वह जड़ी-बूटियों, जल, पेड़ की पत्तियों, फलों, जड़ों, लकड़ियों आदि का प्रयोग छोटी-मोटी बीमारियों को दूर करने के लिए करता था। फिर आज का मानव तो सभ्य सुसंस्कृत, वैज्ञानिक, परिश्रमी, पुरुषार्थी और न जाने क्या-क्या है। आज चिकित्सा-विज्ञान का क्षेत्र अत्यधिक विकसित हो गया है, लेकिन प्रतिदिन की जिन्दगी में घरेलू नुस्खे, मनुष्य के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हो रहे हैं। कुछ नुस्खे तथा जड़ी-बूटियां तो इतनी कारगर हैं कि उनके सामने बड़े- बड़े डॉक्टर दांतों तले उंगली दबाने लगते हैं। सचमुच हमारे पूर्वजों ने अपने जीवन को तपाकर इनकी खोज की होगी। इसीलिए वे बहुत महत्त्वपूर्ण साबित हो रहे हैं। ये दवाएं तथा नुस्खे पौढ़ी दर पीढ़ी प्रत्येक घर में जीवित रहते हैं। यही कारण है कि घर के किसी भी सदस्य के बीमार होने पर दादी, नानी, मां, चाची आदि तत्काल इनका प्रयोग करती हैं और रोते हुए रोगी के चेहरे पर मुस्कान बिखेर देती हैं।
‘घरेलू चिकित्सा’ हमारे देश की मिट्टी, पानी और हवा से जुड़ी हुई है। चूंकि मनुष्य प्रकृति के इन्हीं तत्त्वों में लोट-पोटकर बड़ा होता है, इसलिए वह इनको नहीं भूल पाता। लोकप्रियता का प्रमुख कारण है कि ये नुस्खे गांवों से लेकर शहरों तक घर-घर स्त्री-पुरुषों की जबान पर बसे हुए हैं। लोगों को न तो कोई प्रशिक्षण लेना पड़ता है और न ही कोई ग्रंथ पढ़ना पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि गांव या शहर में हम चर्चा करते हैं कि हमारे सिर में दर्द है तो सुनने वाला व्यक्ति तुरन्त कोई न कोई दवा बता देता है। इसका मतलब है कि हमारे देश के घर-घर में घरेलू चिकित्सा से सम्बंधित जड़ी-बूटियों का प्रचलन दाल-रोटी की तरह है। यही कारण है कि भारतीय चिकित्सा- प्रणाली घर से शुरू होती है और लोगों का कल्याण करती है।
लाभकारी चिकित्सा प्रणाली
घरेलू चिकित्सा लाभकारी भी है। मान लीजिए, आप गांव में रहते हैं। रात के बारह बजे हैं। अचानक आपका बेटा सोते सोते उठ बैठता है। वह रोने लगता है। आपको पता चलता है कि बेटे को फ्लू हो गया है। उसकी नाक बंद हो गई है। सांस लेना कठिन हो रहा है। पसलियां भी चल रही हैं। बेटे को घबराहट एवं बेचैनी है। आप इस व्याधि की घरेलू चिकित्सा जानते हैं। 4 दाने कालीमिर्च, 2 दाने लौंग, एक छोटी गांठ अदरक, 4 पत्तियां तुलसी तथा 2 पत्तियां नीम-इन सबको एक कप पानी में डालकर आपने काढ़ा बनाया और बालक को चम्मच से पिला दिया। बच्चे की छाती पर देशी घी या सरसों के तेल में तारपीन का तेल मिलाकर मल दिया। बालक चैन की नींद सो गया।
कितनी कल्याणकारी है- घरेलू चिकित्सा ? मतलब यह कि घरेलू चिकित्सा के फलस्वरूप हम व्यर्थ को भाग-दौड़ से भी बच जाते हैं। चूंकि हमारा शरीर हमारे देश की प्रकृति से जुड़ा हुआ है, इसलिए यह चिकित्सा तुरन्त लाभ करती है। पेट में दर्द हो तो पानी में हींग घोलकर पेट पर मल दीजिए-दर्द गायब। चोट लग गई है। बंद चोट है। सरसों के तेल में हल्दी मिलाकर गरम कीजिए। फिर रूई में लगाकर चोट पर बांध दीजिए-सुबह का दर्द दोपहर तक गायब। इस दृष्टि से घरेलू चिकित्सा अत्यंत लाभकारी भी है।
सस्ती और अनमोल चिकित्सा
घरेलू चिकित्सा की एक विशेषता है कि यह बहुत सस्ती है। बच्चे को खांसी आती है। आधा चम्मच पिसी हुई हल्दी शहद या पानी के साथ बच्चे को सेवन करा दीजिए-दो दिन में खांसी गायब। घर में किसी को उच्च रक्तचाप है। उसे दो आलू उबालकर दे दीजिए। यदि घर में आंवले का मुरब्बा हो तो एक आंवला खिला दीजिए। रक्तचाप नॉर्मल हो जाएगा। माताजी को आंव (पेचिश) हो गई है। 8-10 कालीमिर्चों का चूर्ण पानी से पिला दीजिए। थोड़ी देर में पेचिश दम तोड़ देगी। बच्चे का कान बहता है। मारे दर्द के वह बेचैन है। कान में भीम या निबोली का तेल डाल दीजिए। यदि घर में लहसुन हो तो सरसों के तेल में पकाकर दो बूंद तेल कान में टपका दीजिए। देखते-देखते बच्चा हंसने लगेगा।कितनी सस्ती और अनमोल है यह घरेलू चिकित्सा ? घर के किसी भी सदस्य को कहीं जाना ही नहीं पड़ता। यदि उंगली कट जाए और घाव बन जाए तो घबराने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। अपना मूत्र रूई में भिगोकर उंगली के घाव पर रख दीजिए। ऊपर से पट्टी बांध दीजिए। दिनभर में चार बार घाव को मूत्र से तर कीजिए। चौथे दिन पट्टी खोल दीजिए। घाव भरा हुआ दिखाई देगा। वर्षाकाल में बच्चों के प्रायः फुंसियां निकल आती हैं। नीम की छाल पानी में घिसकर फुंसियों पर लगा दीजिए। तीन-चार दिनों में फुंसियां मुरझा जाएंगी। इसी प्रकार हजारों अनमोल दवाएं हैं जो हमारे घर के चारों ओर बिखरी पड़ी हैं। यदि हम उनका मूल्य जानते हैं तो निःशंक उपयोग करना चाहिए। वे हमारी उसी प्रकार सेवा करेंगी, जैसी कोई माता अपने बच्चे की सेवा करती है।
प्रकृति की बहन-घरेलू चिकित्सा
सचमुच घरेलू चिकित्सा प्रकृति की बहन है। इस बात को हम इस तरह समझ सकते हैं कि प्रकृति ने सूर्य, चन्द्रमा, आकाश, वायु, मिट्टी, जल, पेड़-पौधे, लताएं और विभिन्न प्रकार के सुन्दर-सुन्दर पशु-पक्षी बनाए हैं। ये सभी पर्यावरण को संतुलित रखते हैं। हमारे शरीर का पर्यावरण बिगड़ने पर ही हम बीमार हो जाते हैं। यदि हम प्राकृतिक नियमों के अनुसार चलें तो क्यों बीमार पड़ें?
पशु-पक्षी सूर्योदय से पहले उठ जाते हैं, लेकिन हम बिस्तर पर पड़े रहते हैं। नतीजा तुरन्त सामने आ जाता है- गैस मस्तिष्क की ओर चलती है, पाचन क्रिया मंद पड़ जाती है, शरीर को वात रोग लग जाता है, दिनभर की चुस्ती-फुर्ती गायब हो जाती है, काम में मन नहीं लगता आदि। अब सोचने की बात यह है कि एक मात्र देर तक सोते रहने से हमने कितने रोग पाल लिए।तात्पर्य यह है कि जब हम मिट्टी-पानी और वायु से जुड़े हुए हैं तो ये तत्त्व ही हमारा निदान करते हैं। उदाहरण के लिए, पेट पर काली मिट्टी का लेप पाचन क्रिया को सुधारता है। नाक से पानी पीने पर जुकाम नहीं होता। सिर के बालों को मुल्तानी मिट्टी या दही से धोने पर बाल मुलायम रहते हैं।
माथे पर चंदन घिसकर लगाने से ठंडक बनी रहती है। शरीर पर तेल मालिश करके स्नान करने से शरीर स्वस्थ रहता है और त्वचा सुन्दर बनती है। तांबे के बरतन में पानी रखकर प्रातःकाल पीने से यकृत की बीमारियां भाग जाती हैं। सुबह उठते ही एक गिलास पानी पीकर शौच जाने से पेट साफ हो जाता है। इसी प्रकार आजकल जल चिकित्सा और सूर्य चिकित्सा द्वारा छोटे-मोटे अनेक रोगों को दूर किया जा सकता है। अचानक जल जाने पर पानी में जले हुए स्थान को डालने से जलन दूर होती है। सूर्य द्वारा आच्छादित धूप में बैठने से त्वचा के रोग दूर होते हैं। सफेद कोढ़ हो जाने पर यदि व्यक्ति आधा घंटा नित्य धूप में बैठे तो रोगी को काफी लाभ होता है।