आक का पौधा, जिसे मदार भी कहा जाता है, भारत के सूखे और ऊँचे इलाकों में आसानी से देखने को मिल जाता है। आमतौर पर लोग इसे ज़हरीला समझते हैं और इससे दूर रहते हैं। लेकिन आयुर्वेद में इसे बहुत काम का और खास औषधीय पौधा माना गया है।
आप इस ब्लॉग में जानेंगे कि aak plant का सही इस्तेमाल किस तरह कई बीमारियों में फायदेमंद हो सकता है। साथ ही हम इसकी पहचान, प्रकार और इसके पौधे की खासियतों को भी आसान भाषा में समझेंगे। आक के पत्ते, फूल, जड़, दूध, तना — सब किसी न किसी बीमारी में काम आते हैं। अगर इसका इस्तेमाल किसी अच्छे वैद्य की सलाह से और सही मात्रा में किया जाए, तो ये बहुत से रोगों में असरदार साबित होता है।इसलिए आयुर्वेद में इसे वनस्पति पारद यानी सबसे शक्तिशाली औषधीय पौधों में गिना गया है।
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आक की 4 प्रमुख जातियाँ (Types of Aak Plant)
- रक्तार्क (लाल आक)
इसके फूल छोटे होते हैं, सफेद रंग के, लेकिन अंदर से हल्के लाल और बैंगनी रंग की धारियों वाले। इसमें दूध की मात्रा कम होती है। - श्वेतार्क (सफेद आक या मदार)
इसके फूल सफेद होते हैं, जिनमें हल्की पीली चमक होती है। केसर भी सफेद होती है। इसमें दूध ज्यादा होता है। इसे पूजा में भी इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए यह मंदिरों के पास लगाया जाता है। - राजार्क (दुर्लभ आक)
यह बहुत कम दिखने वाला पौधा है। इसकी केवल एक ही शाखा होती है और उस पर चार पत्ते होते हैं। इसके फूल चांदी जैसे सफेद और चमकीले होते हैं। - पिस्तई आक
इस आक के फूल हल्के हरे (पिस्ता जैसे) रंग के होते हैं। यह कम देखने को मिलता है और इस पर अभी ज़्यादा रिसर्च नहीं हुई है।
आक का पौधा कैसा दिखता है? (Aak Plant Description)
- आक का पौधा 4 से 12 फुट तक ऊँचा हो सकता है।
- इसका तना हल्के भूरे रंग का और थोड़ा नरम होता है।
- पूरा पौधा सफेद रूई जैसे बालों से ढका रहता है।
- पत्तियाँ मोटी होती हैं और दिल जैसी शक्ल की होती हैं।
- फूल सफेद या बैंगनी-लाल होते हैं और गुच्छों में लगते हैं।
- हर फूल में 5 पंखुड़ियाँ और 5 केसर होते हैं।
- फल तोते की चोंच जैसे दिखते हैं, इसलिए इन्हें शुकफल भी कहा जाता है।
- फल के अंदर भूरे रंग के बीज होते हैं, जो रूई जैसे रेशों से जुड़े होते हैं।
- फल पकने पर फटते हैं और बीज हवा में उड़ जाते हैं।
- पौधे को तोड़ने पर सफेद दूध जैसा रस निकलता है।
आक के अंदर कौन-कौन से असरदार तत्व होते हैं? (Aak Plant Chemical Properties)
आक के पौधे में एक खास तरह का पीला, तीखा और चिपचिपा रस पाया जाता है, जो इसके असर की असली वजह होता है।

दो मुख्य औषधीय तत्व:
- मंडारएल्बन (Mandaralban)
इसे मंदारिन भी कहते हैं। यह ईथर (ether) और alcohol में घुल जाता है, लेकिन पानी या तेल में नहीं। - भंडार फ्युएबिल (Bhanda Phuebil)
यह भी एक असरदार तत्व है, जो खासतौर पर इसकी जड़ में पाया जाता है।
इन दोनों का इस्तेमाल कई आयुर्वेदिक दवाओं में होता है।
आक के फ़ायदे: त्वचा और कान की समस्याओं के लिए एक प्राकृतिक समाधान(Benefits of aak plant)
1. मुँह की झाइयों और धब्बों के लिए:
- 3 ग्राम हल्दी का चूर्ण लें।
- इसमें आक के दूध की 5-7 बूंदें (या अगर आपकी त्वचा संवेदनशील है तो आक का रस) और गुलाब जल मिलाकर अच्छी तरह घोट लें।
- इस मिश्रण को अपनी आँखों को बचाते हुए, झाइयों या धब्बों वाली जगह पर लगाएं।
- यह नुस्खा झाइयों और काले धब्बों को हल्का करने में सहायक हो सकता है।
2. सिर की खुजली के लिए:
- आक के पत्तों को पीसकर सिर पर लगाने से सिर में होने वाली खुजली, जलन और दर्द में आराम मिल सकता है।
- यह विशेष रूप से उन स्थितियों में फायदेमंद है जहाँ सिर में नमी, दर्द और खुजली के साथ दाने या फोड़े हों।
3. कान के रोगों के लिए:
- यह एक विशेष आयुर्वेदिक विधि है जिसमें आक के पत्तों को तेल और नमक के साथ इस्तेमाल किया जाता है।
- वैद्य (पारंपरिक चिकित्सक) आक के पत्तों को एक हाथ में लेते हैं और दूसरे हाथ से एक लोहे की कड़छी गर्म करके उसमें ये पत्ते डालते हैं।
- इस प्रक्रिया से पत्तों का जो रस (अर्क) निकलता है, उसे कान में डालने से कई प्रकार के कर्ण रोगों में लाभ मिलता है।
- कान में मवाद आना, सनसनाहट या सांय-सांय की आवाज़ (टिनिटस) जैसी समस्याओं में यह विशेष रूप से फायदेमंद बताया गया है।
आपने इस ब्लॉग में जाना कि:
- आक का पौधा सिर्फ ज़हर नहीं, बल्कि एक असरदार औषधि भी है।
- इसके चार प्रमुख प्रकार होते हैं, जिनमें हर एक की खास पहचान और उपयोग है।
- आक का पूरा पौधा सफेद दूध जैसे रस से भरा होता है, जो सही इस्तेमाल पर दवा की तरह काम करता है।
- इसमें पाए जाने वाले तत्व जैसे मंडारएल्बन और भंडार फ्युएबिल आयुर्वेदिक दवाओं में इस्तेमाल किए जाते हैं।
🌿 ध्यान रखें: बिना वैद्य की सलाह के आक का प्रयोग न करें। सही जानकारी और निगरानी में ही इसका उपयोग करें।
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