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प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ और सुखी रहना चाहता है। अतः डॉक्टरों तथा वैद्यों ने एक मत से कुछ नियम बनाए हैं। यहां हम सर्वसाधारण की जानकारी के लिए उन नियमों की चर्चा कर रहे हैं-
स्वस्थ रहने के 40 नियम
- सुबह या दोपहर का भोजन करने के बाद तुरन्त तेज चलना या दौड़कर चलना पेट के लिए बहुत हानिकारक है। अतः कुछ देर आराम करने के बाद कहीं जाना चाहिए।
- शाम को भोजन करने के बाद लगभग एक कि.मी. तक धीरे-धीरे शुद्ध वायु में टहलना चाहिए। खाना खाकर फौरन सो जाने से कब्जे हो सकता है।
- भोजन करने के फौरन बाद मूत्र त्याग करना चाहिए।
- तेज धूप में चलने के बाद, व्यायाम या शारीरिक मेहनत के बाद अथवा शौच जाने के तुरन्त बाद पानी कदापि नहीं पीना चाहिए।
- शहद और घी बराबर की मात्रा में मिलाकर नहीं खाना चाहिए। यह विष हो जाता है।
- दही को गरम करके खाने से आंतों को नुकसान पहुंचता है।
- मछली खाने के बाद दूध पीना ठीक नहीं है। इन विरोधी पदार्थों के सेवन से कुष्ठ रोग होने की अधिक सम्भावना रहती है।
- दूध तथा कटहल दोनों एक जैसे गुण रखते हैं, लेकिन परस्पर विरोधी हैं। अतः इन दोनों चीजों को एक साथ नहीं खाना चाहिए।
- सिर पर कपड़ा या मफलर आदि बांधकर अथवा पैरों में जूते-मोजे पहनकर कभी नहीं सोना चाहिए। इससे रक्त-संचार में बाधा पड़ती है।
- शहद को गरम करके नहीं प्रयोग करना चाहिए।
- बहुत तेज या बहुत धीमी रोशनी में पढ़ना, चलती गाड़ी में पढ़ना, सिनेमा या टी. वी. अधिक देखना, गरम
- चीजों का अधिक सेवन करना, मिर्च-मसालों का अधिक उपयोग करना, धुएं तथा आग के पास देर तक बैठना, तेज धूप में चलना या सूर्य की ओर देखना आदि बातें आंखों के लिए नुकसानदायक हैं।
- अगर घर में सन्निपात (सरसाम) का कोई रोगी हो और उसे जलन होती हों तो ठंडा पानी नहीं देना चाहिए। सदैव गुनगुना पानी पिलाना चाहिए।
- यदि घर में किसी को बुखार हो जाए तो उसे ठंडी हवा, परिश्रम तथा क्रोध आदि से बचाना चाहिए।
- महर्षि चरक ने लिखा है-“निद्रा से पित्त शान्त होता है, मालिश करने से वायु कम बनती है, उल्टी होने से कफ घट जाता है और लंघन करने से बुखार शान्त होता है।” अतः घरेलू चिकित्सा करते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
- बेहोशी, गर्मी, पित्त बढ़ने, रक्त विकार, विष विकार, वमन अथवा रक्तपित्त आदि रोगों में रोगी को ताजा जल पिलाना चाहिए।
- कान में दर्द होने पर यदि पंत्तों आदि का रस डालना हो तो सदा सुबह के समय डालनी चाहिए। यदि तेल डालना हो तो सूर्य छिपने के बाद डालना चाहिए।
- पीलिया, सूजाक, कुष्ठ, रक्तपित्त, घाव, सूखी खांसी, नींद की कमी आदि रोगों में रोगी को अदरक का सेवन नहीं कराना चाहिए। अदरक आंतों को खुश्क करता है जिससे रोगी की बेचैनी बढ़ सकती है।
- आग या किसी गरम चीज से जल जाने पर जले भाग पर पानी की धार छोड़ना चाहिए। इससे जलन शीघ्र शान्त हो जाती है।
- मालिश करने से वायु कम बनती है तथा रक्त-संचरण ठीक होता है
- गुर्दे की बीमारी वाले रोगी को घी, तेल या उनसे बने पदार्थों का सेवन नहीं कराना चाहिए। न्यूमोनिया के रोगी को शीत हवा से पूरी तरह बचाना चाहिए। उसे अधिक से अधिक समय पलंग पर लेटकर आराम करना चाहिए।
- यदि मस्तिष्क में खून बढ़ने के कारण नाक से खून जहने लगे तो उसे तुरन्त रोकने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए, वरना पक्षाघात का डर रहता है। यह खून कान तथा आंखों से भी बाहर आ सकता है। यदि किसी व्यक्ति ने विषैला पदार्थ खा लिया हो तो उसे तुरन्त उल्टी करानी चाहिए। उल्टी कराने के लिए
- एक गिलास पानी में आधा चम्मच नमक घोलकर देना चाहिए। उल्टी हो जाने के बाद मौसमी का जूस घंट-घूंट पिलाना चाहिए।
- यदि किसी के कान में दर्द हो, कान बह रहा हो, कान पक गया हो और दर्द हो रहा हो तो उसे ठंडे पानी तथा ठंडी हवा से बचाना चाहिए।
- यदि रात को नींद न आती हो तो एक गिलास पानी में एक चम्मच खुरासानी अजवायन घोलकर पिएं। अजीर्ण तथा मन्दाग्नि दूर करने वाली दवाएं सदा भोजन के बाद लेनी चाहिए।
- मल रुकने, कब्ज होने या पेट में मल की गांठ बंधने पर यदि दस्त कराना हो तो रोगी को सुबह तड़के कराना चाहिए। रात को दस्त की कोई भी दवा नहीं देनी चाहिए।
- यदि कफ बढ़ जाए तो देशी घी में नमक मिलाकर छाती पर मलना चाहिए ताकि जमा कफ बाहर निकल जाए। उल्टी कराके भी, कफ को बाहर निकाला जा सकता है।
- यदि पैर में मोच आ गई हो या वात रोग के कारण सूजन हो, तो चोट पर लेप रात में न लगाकर दिन में लगाना चाहिए। लेप के सूखने पर उसे बार-बार बदलते रहना चाहिए।
- यदि लकवा की शिकायत हो तो चिकित्सक के परामर्श से गरम औषधि या तेल की मालिश बार-बार करनी चाहिए।
- हिस्टीरिया के रोगी के मुंह पर पानी के छींटे देकर नसवार देनी चाहिए ताकि छींक आते ही श्लेष्मा को रुकावट दूर हो जाए और रोगी होश में आ जाए।
- यदि घर में किसी किशोरी या युवती को हिस्टीरिया के दौरे पड़ते हों तो उसे लंघन, वमन या दस्त आदि नहीं कराना चाहिए।
- यदि बच्चों को कृमि रोग (पेट में कीड़े) हो जाए तो चीनी, गुड़, मिठाई, दूध आदि का सेवन नहीं कराना चाहिए। गाय का दूध पतला करके देना चाहिए।
- अम्लपित्त रोग में भोजन के साथ पानी पीना, भोजन के तुरन्त बाद पानी पीना, खट्टे या अम्लीय पदार्थ खाना, चाय, कॉफी, शराब, भांग, गुटका-पान मसाला, चरस तथा अधिक गरम चीजें हानिकारक हैं।
- मट्टा, खट्टी चीजें, फलों का रस, तेल की चीजें आदि रात में नहीं खानी चाहिए।
- यदि मानसिक आघात, चिन्ता, शोक, क्रोध आदि के कारण नींद न आती हो तो थोड़ा-सा जायफल पानी में घिसकर चाटना चाहिए।
- सफेद दाग वाले रोगी या कुष्ठ रोगी को मांस, दूध, दही तथा इनसे बनी वस्तुएं नहीं खानी चाहिए।
- यदि किसी दवा को किसी पतले पदार्थ में मिलाना हो तो चाय, कॉफी या दूध में न मिलाकर मट्ठा, नीबू के रस, नारियल के पानी या सादे पानी में मिलाकर लेना चाहिए।
- घी या तेल की चीजें खाने के बाद तुरन्त पानी न पीकर दो घंटे बाद पीना चाहिए।
- हींग को सदैव देशी घी में भूनकर ही उपयोग में लाना चाहिए। लेप में कच्ची हींग लाभदायक है।
- गुटका, पान-मसाले आदि का सेवन करना हानिप्रद होता है
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