मूत्रकृच्छ्रता, जिसे अंग्रेजी में ‘Dysuria’ कहा जाता है, एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को पेशाब करते समय कष्ट होता है। यह एक सामान्य रोग है जो कभी-कभी हर किसी को हो सकता है, लेकिन यह समस्या अधिक उम्र के व्यक्तियों में अधिक होती है। इस ब्लॉग में, हम मूत्रकृच्छ्रता की परिभाषा, कारण, लक्षण, और इसका प्रबंधन के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
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मूत्रकृच्छ्रता Dysuria क्या है ?
मूत्रकृच्छ्रता एक रोग है जिसमें व्यक्ति को पेशाब करते समय कठिनाई या कष्ट होता है। यह स्थिति अक्सर पेशाब के समय दर्द, जलन, या बार-बार पेशाब की इच्छा का अनुभव कराती है। मूत्रकृच्छ्रता के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि यूरिनरी इंफेक्शन, किडनी संबंधी समस्याएं, यूरेथ्रल संकोच, या यूरेथ्रल स्ट्रिक्चर। इस स्थिति का निदान और उपचार उसके कारण और लक्षणों पर निर्भर करता है।
मूत्रकृच्छ्रता Dysuria रोग की उत्पत्ति
मूत्रकृच्छ्ता में व्यक्ति को मूत्र बड़ी मुश्किल से आता है। यह बीमारी मिर्च-मसालेदार पदार्थ अधिक खाने, खून में विषैला मादा भर जाने तथा मूत्राशय में रुकावट उत्पन्न होने के कारण होती है।
Dysuria रोग के कारण
मूत्र करते समय पीड़ा तथा जलन होती है। पेशाब बूंद-बूंद आता है। पेड़ में दर्द तथा एक प्रकार की अकड़न होती है। कंपकंपी के साथ बुखार भी आ जाता है। मूत्र त्याग करते समय कभी-कभी टीस उठती है।
- संक्रामक रोग: जैसे कि यूरिनरी इंफेक्शन (UTI) जो कि यूरेथ्रा में संक्रमण के कारण होता है।
- गुर्दे की पथरी: यदि किडनी में पथरी हो, तो पेशाब करते समय कष्ट हो सकता है।
- यूरेथ्रल स्ट्रिक्चर: यह यूरेथ्रा के आंतरिक भाग में संकोच होने के कारण होता है, जो पेशाब करते समय कष्ट उत्पन्न कर सकता है।
- यूरेथ्रल इन्जेक्शन: कई बार यूरेथ्रा में इंजेक्शन या यूरेथ्रल कैथेटर के प्रयोग से भी मूत्रकृच्छ्रता हो सकती है।
Dysuria का इलाज
1. घरेलू उपाय
- पके हुए पेठे का रस 10 ग्राम तथा मिश्री 5 ग्राम दोनों को मिलाकर पिएं।
- पके पेठे के रस से मूत्रकृच्छ्रता में लाभ होता है
- दूध में पुराना गुड़ मिलाकर कुछ दिनों तक पीने से मूत्रकृच्छ्रता नष्ट हो जाती है। यदि चोट लगने के कारण मूत्रकृच्छ्र हुआ हो तो आंवले के रस में शहद मिलाकर पिएं।
- गोखरू का काढ़ा बनाकर उसमें जरा-सा जवाखार मिलाकर सेवन करें।
- त्रिफला तथा बेर की जड़ की छाल दोनों 20-20 माशे रात की एक गिलास पानी में भिगो दें। सुबह उस पानी को छानकर सेंधा नमक डालकर पी जाएं।
- जवाखार तथा मिश्री दोनों 6-6 माशे पीसकर ठंडे पानी से सेवन करें।
- 9 माशे जवाखार को गाय के मट्टे के साथ खाएं।
- आधा चम्मच जीरा तथा 2 ग्राम गुड़-दोनों को मिलाकर उपयोग करें।
- कटेरी के दो चम्मच रस में शहद डालकर सेवन करें।
- सरकंडे की जड़, इंख की जड़ तथा कास की जड़-तीनों 5-5 ग्राम लेकर काढ़ा बनाकर सेवन करें।
- पके नीबू के रस में गाय का कच्चा दूध मिलाकर पिएं।
- मुनक्का या किशमिश पांच दाने तथा मिश्री 5 ग्राम दोनों को मड्ढे में मिलाकर उपयोग करें।
- गोखरू तथा सोंठ का काढ़ा बनाकर पिएं।
- 5 माशे मूंगा भस्म को चावल के मांड़ के साथ सेवन करें।
- केले के खम्भे का रस दो चुम्मच और गोमूत्र दो चम्मच दोनों को मिलाकर उपयोग में लाएं।
- तिबसीं के बीज, महुआ तथा दारु हल्दी-तीनों चीजें 3-3 ग्राम की मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पिएं।
- शोधित गंधक और बड़ी कौड़ी का भस्म-दोनों 2-2 माशे लेकर शहद के साथ सेवन करें।
2. आयुर्वेदिक इलाज
- गोखरू, अमलतास, डाभ की जड़, जवासा, आंवला, हरड़ की छाल तथा पाषाणभेद-सभी चीजें बराबर की मात्रा में कूट-पीसकर छान लें। इसमें से एक चम्मच चूर्ण का काढ़ा बनाकर सेवन करें।
- शिलाजीत, पाषाणभेद, इलायची, गोखरू, पीपल, तिबर्सी के बीज, सेंधा नमक और केसर-सभी बराबर की मात्रा में लेकर बारीक पीस लें। इसमें से 4 माशा चूर्ण एक माह तक पानी या पुराने गुड़ के साथ लें।
- 20 ग्राम गोखरू को एक गिलास पानी में औटाकर छान लें। फिर इसमें गुग्गुल 5 ग्राम, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, हरड़ की छाल, बहेड़े की छाल, आंवला और नागरमोथा 3-3 ग्राम-इन सबको पीसकर मिलाएं। इसमें से आधा चम्मच चूर्ण प्रतिदिन जल के साथ सेवन करें।
- बड़ी कटेरी, पाड़इ, मुलहठी, महुआ तथा इन्द्रजी- सब बराबर की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। प्रतिदिन एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ लें।
- थोड़े-से गोखरू को 200 ग्राम पानी में डालकर जवाखार, सोंठ, इलायची, केसर, काहू का बकला तथा तिबर्सी के बीज-सब 3-3 ग्राम पीसकर मिला दें। फिर इसे पका-छानकर बोतल में भर लें। प्रतिदिन दो चम्मच काढ़ा (क्वाथ) सुबह के समय सेवन करें।
- एलादि क्वाथ, वरुणादि क्वाथ, वरुणादि घृत, वरुणादि चूर्ण आदि में से कोई एक दवा निर्देशानुसार दें। सोंठ, बरुना की छाल, गेरू, पाषाणभेद तथा ब्राह्मी इन सबको बराबर की मात्रा में लेकर क्वाथ बनाएं और सुबह-शाम सेवन करें।
- पाषाणभेद, बरुना की छाल, गोखरू, एरंड की जड़, भटकटैया तथा तालमखाना- सबको बराबर की मात्रा में लेकर महीन पीस डालें। इसमें से 3-3 माशे चूर्ण सुबह-शाम दही के साथ लें।
3. जड़ी-बूटी इलाज
- थोड़ी-सी दूब घास तथा तुलसी के 4-5 पत्ते-दोनों को सिल पर पीसकर शिश्ननली पर लेप लगाएं। पेड़ पर भी यह लेप करें।
- मकोय के पत्ते, अदरक तथा नीम के पत्ते इन सबको पीसकर पेडू पर दिन में तीन बार लेप करें।
- विषखपरे के फूल तथा गांजा के पत्ते-दोनों को पीसकर अण्डकोष के नीचे लेप लगाएं।
- खसखस की घास, लाल चंदन तथा सोंठ तीनों को पीसकर पेड़ पर लेप करें।
- 10 बूंद कनेर के पीले फूलों के रस में जरा-सा शहद मिला लें। फिर इसे सुबह-शाम चाटें।
4. प्राकृतिक इलाज
- शिश्न से नीचे की और तथा योनि से कुछ नीचे गद्दी पर काली-पीली दोनों प्रकार की मिट्टियों को पानी में मुलायम करके लगाएं। ऊपर से पट्टी बांध दें। दें। पट्टी को बार-बार गीला करते रहें।
- कटि स्नान करते समय शिश्न को पानी में 15 मिनट तक डुबोकर रखें।
- दोनों पांवों के तलवों पर 10 मिनट तक निरंतर पानी की धार छोड़ें।
- रोड़ की हड्डी पर धीरे-धीरे पानी छोड़ते हुए हाथ से मसलें।
- दोनों पैर के पंजों को पानी में 10 मिनट तक डुबोकर रखें।
5. होमियोपैथिक इलाज
- पेशाब लगने पर पेशाब न उतरे या काफी प्रयास के बाद बूंद-बूंद आए ऐसी हालत में रूटा दें।
- पेशाब लगे, परन्तु आने में कठिनाई हो तथा जोर लगाने पर बूंद-बूदं आए इसके लिए क्रियोजओट या ट्रिहिकम का सेवन करें।
- पेशाब अधिक लेकिन कठिनाई से उतरे- इसके लिए एसिड गैलिक दें।
- लगातार मूत्र-त्याग करने की इच्छा और रात के समय बार-बार पेशाब होने पर
- एमोन कार्ब दें। मूत्र-त्याग करने में काफी जोर लगाना पड़े- इसके लिए एल्यूमिना उत्तम दवा है।
- हर तरह के मूत्र रोग में एरिस्टोलेशिया क्लेमेटिस देना चाहिए।
- बार-बार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में मूत्र आने की स्थिति में इक्विजिटम हाईमेल दें।
- पेशाब अधिक मात्रा में परन्तु कष्ट के साथ बूंद-बूंद आए- इसके लिए अर्जेन्टाइना दें।
- मूत्र थोड़ा किन्तु मूत्रनली में जलन के साथ बाहर आए इसके लिए आनिस्कम दें। शय्या पर मूत्र निकल जाने तथा बूंद-बूंद पेशाब आने की स्थिति में वर्बेस्कम दें।
- मूत्र-त्याग की इच्छा किन्तु मूत्र न निकले, जोर लगाने पर थोड़ा-थोड़ा आए, मूत्रनली में कांटे-से चुभे आदि लक्षणों में कास्टिकम दें।
- बच्चों का मूत्र बिस्तर पर निकल जाए- इसके लिए ब्लूमिया दें।
- निरंतर पेशाब की इच्छा लेकिन जोर लगाने पर पेशाब बूंद-बूंद आए-इसके लिए सैम्बल मूलार्क 6 या मेडोरिनम का सेवन करें।
6. चुम्बक इलाज
- मेरुदण्ड के निचले हिस्से में शक्तिशाली चुम्बकीय बेल्ट लगाएं।
- शिश्न या योनि से कुछ ऊपर की ओर शक्तिशाली चुम्बक लगभग 20 मिनट तक लगाएं। मूत्र सम्बंधी सभी प्रकार के रोगों में चुम्बक का उत्तरी ध्रुव लगाया जाता है।
- चुम्बक का उत्तरी ध्रुव लगाते समय यह ध्यान रखें। कि रोगी हिले-डुले नहीं। वह स्थिर लेटा रहे।
7. एक्यूप्रेशर इलाज
- दाएं पैर के तलवे तथा दाएं हाथ की हथेली दोनों जगह बीच में धीरे-धीरे दबाव डालें।
- यह दबाव अंगूठे से लगभग 4-5 सेकंड दिन में तीन-चार बार डालें। उसी समय इन स्थानों को धीरे-धीरे रगड़ना भी चाहिए।
- दाएं हाथ की कलाई पर ठीक अंगूठे के नीचे प्रेशर डालने से भी काफी लाभ होता है।
यदि आपको मूत्रकृच्छ्रता Dysuria रोग लंबे समय तक बनी रहती है या गंभीर है, तो डॉक्टर से सलाह लेना उचित होगा। वे सही उपचार और सलाह प्रदान कर सकते हैं।
मूत्रकृच्छ्रता Dysuria रोग मे अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
यहाँ मूत्रकृच्छ्रता Dysuria के बारे में कुछ आम सवाल Frequent Asked Questions(FAQs) हैं:
प्रश्न 1 : मूत्रकृच्छ्रता क्या है?
उत्तर: मूत्रकृच्छ्रता एक स्थिति है जिसमें पेशाब करते समय दर्द या जलन का अनुभव होता है।
प्रश्न 2 : मूत्रकृच्छ्रता के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर: मूत्रकृच्छ्रता के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि मूत्रमार्ग संक्रमण, यूरेथ्रल स्ट्रिक्चर, किडनी स्टोन्स, या अन्य बीमारियाँ।
प्रश्न 3 : मूत्रकृच्छ्रता के क्या लक्षण होते हैं?
उत्तर: मूत्रकृच्छ्रता के लक्षण में पेशाब करते समय दर्द, जलन, या तनाव महसूस हो सकता है।
प्रश्न 4 : मूत्रकृच्छ्रता का निदान कैसे होता है?
उत्तर: मूत्रकृच्छ्रता के निदान के लिए, डॉक्टर आपकी मेडिकल हिस्ट्री का परीक्षण करेंगे और उपयुक्त टेस्ट और परीक्षण करेंगे। इसमें मूत्र परीक्षण, यूरीन कल्चर, और इमेजिंग टेस्ट शामिल हो सकते हैं।
प्रश्न 5 : मूत्रकृच्छ्रता का उपचार क्या है?
उत्तर: मूत्रकृच्छ्रता के उपचार में दवाइयों का सेवन, जलन कम करने वाले दवाओं का सेवन, और कारगरता के लिए सुझाए गए जीवनशैली परिवर्तन शामिल हो सकते हैं।
प्रश्न 6 : मूत्रकृच्छ्रता को कैसे रोका जा सकता है?
उत्तर: मूत्रकृच्छ्रता को रोकने के लिए, अच्छे स्वास्थ्य और हाइज़ीन अनुशासन का पालन करें, पेशाब के बाद वाशिंग, पर्याप्त पानी पीना, और विशेषज्ञ की सलाह का पालन करें।
प्रश्न 7 : क्या मूत्रकृच्छ्रता के लक्षण व्यक्ति के आयु के साथ बदलते हैं?
उत्तर: हां, मूत्रकृच्छ्रता के लक्षण व्यक्ति के आयु के साथ बदल सकते हैं। उदाहरण के लिए, बच्चों में यूरीन इंफेक्शन का खतरा अधिक होता है।
प्रश्न 8 : क्या लोगों को मूत्रकृच्छ्रता के अनुभव करने की आमतौर पर संभावना होती है?
उत्तर: हां, मूत्रकृच्छ्रता को किसी भी वयस्क या बच्चे अनुभव कर सकते हैं, लेकिन उसके पीछे के कारण और उपचार व्यक्ति की उम्र और स्थिति पर निर्भर करते हैं।
प्रश्न 9 : क्या मूत्रकृच्छ्रता यौन संचारित संक्रमण (एसटीआई) का एक लक्षण हो सकता है?
उत्तर: हां, मूत्रकृच्छ्रता कुछ यौन संचारित संक्रमणों जैसे कि क्लामिडिया, गोनोरिया, या ट्रिकोमोनाइसिस का एक लक्षण हो सकता है। यदि आप तनाव या जननांग में जलन के साथ मूत्रकृच्छ्रता का अनुभव कर रहे हैं, तो एसटीआई की जांच करवाना महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 10 : क्या मूत्रकृच्छ्रता पुरुषों या महिलाओं में अधिक सामान्य है?
उत्तर: मूत्रकृच्छ्रता पुरुषों और महिलाओं दोनों में हो सकती है, लेकिन उसके पीछे के कारण विभिन्न हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, महिलाओं में यूरिनरी ट्रैक्ट संक्रमण अधिक होते हैं, जबकि पुरुषों में प्रोस्टेट बढ़ने के लिए कारण हो सकता है।
प्रश्न 11 : मूत्रकृच्छ्रता को राहत देने के लिए कोई घरेलू उपचार या स्व-देखभाल के उपाय हैं?
उत्तर: पर्याप्त पानी पीना, कॉफीन और तीखे खाने जैसे उत्तेजकों से बचना, और अच्छी जननांग हाइजीन अनुशासन अधिकतम मूत्रकृच्छ्रता को राहत दिलाने में मदद कर सकते हैं। हालांकि, यदि लक्षण परिस्थितियों में बने रहने पर या बिगड़ते हैं, तो सही मेडिकल सलाह के साथ चिकित्सा कराना महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 12 : क्या मूत्रकृच्छ्रता पेशाब के नियंत्रण के कमजोर हो जाने की एक संकेत हो सकती है?
उत्तर: हां, कभी-कभी मूत्रकृच्छ्रता गंभीर बीमारियों का संकेत हो सकती है, जैसे कि न्यूरोलॉजिकल परिस्थितियाँ या बड़े निर्देशिका का बनना। यदि आपको इस प्रकार का लक्षण हो, तो आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
प्रश्न 13 : क्या मूत्रकृच्छ्रता की दवा के लेने से उपचार किया जा सकता है?
उत्तर: हां, मूत्रकृच्छ्रता के उपचार में आमतौर पर दवाइयों का सेवन किया जाता है, जो बीमारी के कारण और गंभीरता पर निर्भर करता है। डॉक्टर द्वारा निर्धारित उपचार का पालन करें।
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