कृमि रोग क्या है (आंतों के कीड़े) helminthiasis – जानिए लक्षण, कारण, और 4 तरह के उपाय

कृमि रोग, जिसे आंतों के कीड़े के नाम से भी जाना जाता है, एक आम स्वास्थ्य समस्या है जो बच्चों और वयस्कों दोनों में हो सकती है। ये कीड़े हमारी आंतों में प्रवेश कर विभिन्न प्रकार की समस्याओं का कारण बनते हैं, जैसे पेट में दर्द, उल्टी, दस्त, भूख में कमी, और वजन में गिरावट। आंतों के ये परजीवी कीड़े विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं, जैसे राउंडवर्म, टेपवर्म, हुकवर्म, और पिनवर्म, जो शरीर के विभिन्न अंगों को प्रभावित कर सकते हैं। ये संक्रमण अक्सर अस्वच्छता, दूषित भोजन या पानी के सेवन से होता है। सही समय पर पहचान और उपचार से इस समस्या को दूर किया जा सकता है।

कृमि रोग क्या है (आंतों के कीड़े) helminthiasis - जानिए लक्षण, कारण, और 4  तरह के उपाय
कृमि रोग क्या है (आंतों के कीड़े)

कृमि रोग क्या है ? (what is helminthiasis ?)

आयुर्वेद के अनुसार आमाशय तथा अंतड़ियों के कई विकारों में कृमियों का हाथ होता है। ये कृमि (कोड़े) चार प्रकार के होते हैं-पुटीषज1, श्लेष्मज2, शोणितज3 तथा मलज4। ये स्त्री, पुरुषों, बच्चों या वृद्धों किसी को भी हो सकते हैं। ये कीड़े पेट में विभिन्न दोषों के बिगड़ जाने के कारण हो जाते हैं। इसके अलावा मक्खियों के बैठने वाले भोजन, खटाई, तेल, लालमिर्च, गरिष्ठ चीजें, देर से हजम होने वाली चीजें आदि खाने से पेट में कृमि हो जाते हैं।

कृमि रोग क्या है (आंतों के कीड़े) helminthiasis - जानिए लक्षण, कारण, और 4  तरह के उपाय
कृमि रोग क्या है ?

इन कीड़ों में सफेद रंग के चुन्ने भी होते हैं। ये बच्चों की गुदा को ठीक से न धोने के कारण हो जाते हैं। फीते को तरह के कीड़े 1/2 से 6 से.मी. तक होते हैं। ये वयस्कों को अधिक होते हैं। मल में इन कीड़ों के छोटे-छोटे टुकड़े निकलते हैं। गोल कीड़े केंचुए कहलाते हैं। ये 12 से 40 से.मी. लम्बे होते हैं।

कृमि रोग का कारण (causes of helminthiasis)

आयुर्वेद के अनुसार आमाशय तथा अंतड़ियों के कई विकारों में कृमियों का हाथ होता है। ये कृमि (कोड़े) चार प्रकार के होते हैं-पुटीषज, श्लेष्मज, शोणितज तथा मलज। ये स्त्री, पुरुषों, बच्चों या वृद्धों किसी को भी हो सकते हैं। ये कीड़े पेट में विभिन्न दोषों के बिगड़ जाने के कारण हो जाते हैं। इसके अलावा मक्खियों के बैठने वाले भोजन, खटाई, तेल, लालमिर्च, गरिष्ठ चीजें, देर से हजम होने वाली चीजें आदि खाने से पेट में कृमि हो जाते हैं।

इन कीड़ों में सफेद रंग के चुन्ने भी होते हैं। ये बच्चों की गुदा को ठीक से न धोने के कारण हो जाते हैं। फीते को तरह के कीड़े 1/2 से 6 से.मी. तक होते हैं। ये वयस्कों को अधिक होते हैं। मल में इन कीड़ों के छोटे-छोटे टुकड़े निकलते हैं। गोल कीड़े केंचुए कहलाते हैं। ये 12 से 40 से.मी. लम्बे होते हैं।

कृमि रोग के लक्षण (symptoms of helminthiasis)

पेट में कीड़े होने से मलद्वार तथा नाक में खुजली मचती है। जी मिचलाता है। पेट में हल्का-हल्का दर्द होता है। भूख बहुत कम लगती है। खून की कमी के कारण कमजोरी हो जाती है। कब्ज, पतले-सफेद दस्त, नींद में पेशाब निकल जाना, स्वभाव में चिड़‌चिड़ापन आदि लक्षण दिखाई देते हैं। जब यह रोग बढ़ जाता है तो कोई विशेष अंग कांपने लगता है या मिरगी के दौरे पड़ने लगते हैं।

चुन्ने (Thread Worms) होने पर गुदा में खुजली होती है। बालक दांत किटकिटाता, नाक कुरेदता तथा बेचैनी अनुभव करता है। केंचुए के कारण पेट का फूलना, आमाशय में चुभन, पित्ती उछलना, चर्म पर ददोड़े निकलना, दांत पीसना, सांस लेने में कठिनाई, पेट में दर्द, दस्त आदि लक्षण दिखाई देते हैं। कीड़ों के प्रभाव से जिगर का फोड़ा, पीलिया तथा आमाशय की सूजन हो सकती है।

कृमि रोग क्या है (आंतों के कीड़े) helminthiasis - जानिए लक्षण, कारण, और 4  तरह के उपाय
कृमि रोग क्या है (आंतों के कीड़े)

कृमि रोग के 4 तरह के उपाय

1 .कृमि रोग का घरेलू उपाय –

  1. रात में एक चम्मच इसबगोल की भूसी पानी के साथ लें।
  2. हरड़, बेलगिरी तथा इसबगोल- तीनों आधा-आधा चम्मच ठंडे पानी से दिन में तीन-चार बार सेवन करें।
  3. इन्द्रजी का चूर्ण 3 माशे की मात्रा में दिन में तीन-चार बार लें।
  4. बेलगिरी, इन्द्रजौ, हरड़, सौंफ, जीरा, धनिया और सेंधा नमक- सभी बराबर की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। एक चम्मच चूर्ण रात को पानी या शहद के साथ खाएं।
  5. 4-4 रत्ती कच्चे आम की गुठली का चूर्ण दही या पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करें। चम्पा के फूलों का रस आधा चम्मच की मात्रा में शहद में मिलाकर चाटें।
  6. पलाश के बीज तथा बायबिडंग दोनों 10-10 ग्राम लेकर चूर्ण बना लें। 3 ग्राम चूर्ण नीबू के रस में डालकर सेवन करें। 3-6 ग्राम कमीला का सेवन गुड़ के साथ करें।
  7. बच्चों को गोल कृमि होने पर आधा चम्मच पान के रस में शक्कर मिलाकर दें।
  8. लहसुन की एक छोटी पूती तथा गुड़ 5 ग्राम दोनों को पीसकर दिन में दो बार दें।
  9. आम की गुठली का चूर्ण आंतों के कीड़े समाप्त कर देता है
  10. नारंगी के सूखे छिलकों का चूर्ण तथा बायबिडंग-दोनों को बराबर की मात्रा में पीस डालें। उसमें से आधा चम्मच चूर्ण खाली पेट गरम पानी से लें। बायबिडंग तथा सहिजन दोनों के काढ़े में शहद मिलाकर सेवन करें। बासी पानी में 6 माशा खुरासानी अजवायन पीसकर मिला लें। अब उसमें जरा-सा गुड़ घोलकर पी जाएं। एक चम्मच नीम के पत्तों के रस में थोड़ा-सा शहद मिलाकर सेवन करें। आधा चम्मच ढाक के पत्तों का रस शहद में मिलाकर चाटें।
  11. इन्द्रायण की जड़ को पानी में पीसकर गुदा में मलहम की तरह नित्य चार-पांच बार लगाएं। एरंड का तेल या पत्तों का रस बालक की गुदा में चार-पांच बार लगाएं।
  12. जैतून का तेल गुदा में नित्य सात-आठ बार लगाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
  13. प्याज के रस में जरा-सा सेंधा नमक डालकर आधे चम्मच की मात्रा में नित्य चार बार पिएं। 1 माशा कमीला को एक कप पानी में औटाकर काढ़ा बनाकर सेवन करें।

2 .कृमि रोग कि आयुर्वेदिक दवाईया –

  1. बायबिडंग, सेंधा नमक, हरड़, निसोध, पीपल, संचर नमक तथा भुनी हुई हींग-इन सात चीजों को सम भाग में पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में से आधा चम्मच सुबह तथा आधा चम्मच शाम को गरम पानी में लें। 
  2. एक चम्मच मुस्तादि क्वाथ का सेवन गरम पानी के साथ सुबह के समय करें।
  3. कृमि मुदगर रस, कौटमर्द रस, कीटारि रस तथा कृमि कालनल रस एक चम्मच की मात्रा में लेकर जहद मिलाकर सेवन कराने से कृमि रोग ठीक होता है ।
  4. सर्वतोभद्र रस तथा अश्व कंचुकी रस-दोनों दो चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार सेवन करें।
  5. मंडूर भस्म 200 मि.ग्रा., बायबिडंग तथा त्रिफला क्वाथ-सबको मिलाकर दिन में तीन बार जल से से।
  6. अजवायन 3 ग्राम, बायबिडंग 3 ग्राम तथा कपूर 1 रत्ती – सबकी एक गोली बना लें। इसी प्रकार को गोलों में चार बार प्रयोग करें।
  7. दिन सत्यानाशी की जड़, बायबिडंग, काला नमक, खुरासानी अजवायन तथा हींग- सभी दवाएं पीस डालें। इसमें से आधा चम्मच दवा का सेवन करें।

3 . कृमि रोग का प्राकृतिक उपाय –

  1. एनिमा लेने से पेट के कीड़े मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।
  2. गुदा पर गीली मिट्टी का फाहा बनाकर रखें।
  3. पिचकारी द्वारा गुदा के भीतर अमृतधारा युक्त पानी छोड़ें।
  4. पेट पर हल्के गरम पानी की धार 10 मिनट तक डालें।

4 .कृमि रोग का होमियोपैथिक उपाय –

  1. छोटे-छोटे कीड़ों की हालत में स्टैनम 30 या 200 दें।
  2. कृमि रोग के कारण बेचैनी होने पर कैलेडियम 6 दें।
  3. कृमि रोग के कारण उल्टी होने पर सैंगुइनेरिया 30 दें।
  4. मलद्वार में बार-बार खुजली, बिना खुजलाए चैन न आए, बच्चा रातभर चीखे-चिल्लाए आदि दशा में यूफोबिया कारोलेटा 6 दें। 
  5. अगर पेट में केंचुए हों तथा कै, हैजा, दस्त आदि हो तो चायना 6 या 30 दें।
  6. यदि पेट में हुक वर्म हों तो चेनोपोडियम 30 दें।
  7. मिचली, मुंह में पानी, सिर चकराना, अधिक भूख, बदहजमी, क्षीण निगाह, पेट और नाभि में दर्द, नाक बार-बार खुजाना तथा चेहरा सूखा एवं पीला होने पर ग्रेनेटम 6 दें।

नोट : यदि आपको कृमि रोग लंबे समय तक बनी रहती है या गंभीर है, तो डॉक्टर से सलाह लेना उचित होगा। वे सही उपचार और सलाह प्रदान कर सकते हैं।

कृमि रोग मे महत्वपूर्ण निर्देश –

हालाकि हमने ऊपर सभी तरह कि दवाइयों के बारे मे बताया है लेकिन अगर आप नीचे दिए गए निर्देशों को पालन करते है तो आपको कृमि रोग कि समस्या नहीं होगी और आप स्वास्थ्य रहेंगे –

  1. खीरा, ककड़ी, कच्चे फल, कच्चे पक्के अमरूद, आलू, मांस, चीनी, खटाई आदि न दें।
  2. नारियल का पानी दिनभर में चार बार पिलाएं।
  3. तीखे, कसैले तथा कड़वे पदार्थ खाने के लिए बार-बार दें। पुदीना, अदरक, जीरा तथा काला नमक की चटनी भोजन के साथ खिलाएं।
  4. फलों में पका अमरूद, पपीता, पपीते के बीज (पीसकर), चीकू, आलूबुखारा, खूबानी, केला आदि का सेवन बच्चे को कराएं।
  5. अखरोट, बादाम, चिलगोजे तथा पका नारियल इस रोग में लाभदायक हैं। लहसुन को पानी में घोलकर काढ़ा बनाकर पिलाएं।

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  1. पुटीषज कृमि आयुर्वेद में वर्णित चार प्रकार के कृमियों में से एक प्रकार हैं। ये कीड़े शरीर में पित्त दोष के असंतुलन के कारण उत्पन्न होते हैं। पुटीषज कृमि विशेष रूप से पाचन तंत्र को प्रभावित करते हैं और इनके कारण पेट में गैस, अपच, और अन्य पाचन समस्याएं हो सकती हैं।
    पुटीषज कृमि के लक्षण
    1. पेट में दर्द और ऐंठन
    2. अपच और गैस की समस्या
    3. भूख में कमी
    4. थकान और कमजोरी ↩︎
  2. श्लेष्मज कृमि : ये कीड़े शरीर में कफ दोष के असंतुलन के कारण उत्पन्न होते हैं। श्लेष्मज कृमि विशेष रूप से श्वसन तंत्र और पाचन तंत्र को प्रभावित करते हैं और इनके कारण खांसी, जुकाम, बलगम, और अन्य कफ संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
    श्लेष्मज कृमि के लक्षण
    1. खांसी और बलगम
    2. नाक का बंद होना या बहना
    3. अपच और पेट में भारीपन
    4. थकान और आलस्य ↩︎
  3. शोणितज कृमि : ये कीड़े शरीर में रक्त (शोणित) दोष के असंतुलन के कारण उत्पन्न होते हैं। शोणितज कृमि विशेष रूप से रक्त को प्रभावित करते हैं और इसके कारण रक्त संबंधित विकार हो सकते हैं।
    शोणितज कृमि के लक्षण
    1. त्वचा पर लाल चकत्ते या खुजली
    2. कमजोरी और थकान
    3. एनीमिया (रक्ताल्पता)
    4. बुखार और ठंड लगना ↩︎
  4. मलज कृमि : ये कृमि मल (फेकल) दोष के कारण उत्पन्न होते हैं। आमतौर पर, ये कृमि आंतों में निवास करते हैं और मल के माध्यम से शरीर में प्रवेश करते हैं। इन कृमियों के कारण आंतों में विभिन्न प्रकार के विकार हो सकते हैं।
    मलज कृमि के लक्षण
    1. पेट में दर्द: नाभि के आस-पास या पेट के निचले हिस्से में दर्द।
    2. मल में कीड़े: मल में छोटे-छोटे कीड़े या उनके टुकड़े दिखाई देना।
    3. भूख में कमी: भूख का कम होना या खाने की इच्छा में कमी।
    4. कमजोरी और थकान: शरीर में ऊर्जा की कमी और थकान महसूस होना।
    5. मल में खून: मल के साथ खून आना।
    6. खुजली: गुदा के आसपास खुजली या जलन। ↩︎

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