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डायरिया, जिसे हिंदी में “दस्त” या “अतिसार” कहा जाता है, एक आम स्वास्थ्य समस्या है जो आंत की स्वाभाविक क्रियाओं में असमान्यता से होती है। इसमें व्यक्ति की पेट से बार-बार दस्त या बेहोशी जैसे लक्षण होते हैं। डायरिया कई कारणों से हो सकता है, जैसे खानपान में असंतुलितता, संक्रमण, विषाक्त पदार्थों का सेवन, और शारीरिक और मानसिक तनाव।
यह समस्या आमतौर पर कुछ दिनों में स्वतः ही ठीक हो जाती है, लेकिन यदि यह लंबे समय तक बनी रहती है तो इसका उपचार आवश्यक होता है। डायरिया के उपचार में अधिक पानी पीना, संतुलित खानपान, और विश्राम करना शामिल होता है। यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन बच्चों और बुढ़ापे में इसका खतरा अधिक होता है। डायरिया को नजरअंदाज न करते हुए समय रहते उपचार करना जरूरी है ताकि इससे होने वाली तनाव और परेशानियों को कम किया जा सके।
डायरिया रोग का कारण (cause of diarrhea disease)
गलत भोजन करने, अशुद्ध पानी पीने, पाचन क्रिया की गड़बड़ी आदि के कारण प्रायः दस्त शुरू हो जाते हैं। इसके अलावा पेट में कीड़ों का विकार, यकृत की खराबी, ऋतु परिवर्तन, जुलाब लेना, शोक, भय, दुख आदि के कारण भी अतिसार की बीमारी हो जाती है। यह रोग जितनी तेजी से आता है, उतनी जल्दी ठीक भी किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए उचित चिकित्सा की आवश्यकता होती है।
डायरिया के लक्षण (symptoms of diarrhea)
इस रोग में पतले दस्त लगने से पहले पेट में हल्का-हल्का दर्द होता है। इसके बाद तेजी से दस्त आने लगते हैं। ये दस्त पिचकारी की तरह छूटते हैं। देखते-देखते रोगी बहुत कमजोर हो जाता है। मुख में खुश्की दौड़ जाती है। आंखों में पौलापन छा जाता है और वे भीतर को धंस जाती हैं। शरीर की चमड़ी सूख जाती है। पेट को दबाने पर दर्द अनुभव होता है। रोगी की चुस्ती-फुर्ती खत्म हो जाती है। शरीर का भार घट जाता है। पेट में वायु भर जाती है और गुड़गुड़ाहट होती है। प्यास अधिक लगती है। कई बार वमन की भी शिकायत हो जाती है।
डायरिया के उपचार
1.डायरिया के घरेलू उपचार
- सबसे पहले रोगी के दस्तों को देखकर उचित घरेलू दवा देने की व्यवस्था करें। उसे साबूदाना तथा बाली दें। अनार का रस, मौसमी का रस और नीबू-पानी बार-बार दें।
- अतिसार में पिण्ड खजूर बहुत लाभदायक है। दस्त लगते ही 6-7 खजूर खा लें। पानी एक घंटा बाद पिएं।
- 10 ग्राम कवाब चीनी का चूर्ण और 3 रत्ती अफीम दोनों को घोटकर 1-1 रत्ती की गोलियां बना लें। दो गोली सुबह और दो गोली शाम को पानी के साथ सेवन करें।
- नीम के कोमल पत्ते छः और बबूल की थोड़े-सी कलियां दोनों को लेकर पीस डालें। यह चटनी दिनभर में दो बार शहद के साथ चाटें।
- यदि बच्चों को दस्त हो जाएं तो पानी में जायफल घिसकर थोड़ी-थोड़ी देर बाद चटाएं। दस्त(डायरिया) रुक जाएंगे। नाभि पर रूई के फाहे से बरगद का दूध लगाएं।
- सफेद राल 4 ग्राम तथा मिश्री 8 ग्राम-दोनों को महीन पीस लें। 6 ग्राम चूर्ण दही के साथ सेवन करें। बच्चों को दस्त लगने पर यह चूर्ण 4 रत्ती की मात्रा में मां के दूध में मिलाकर दें।
- यदि दस्त न रुकते हों तो थोड़ी-सी पिसी हुई हल्दी तवे पर भून लें। फिर उसमें थोड़ा-सा काला नमक मिलाएं। बड़ों को एक चम्मच और बच्चों को आधा चम्मच की मात्रा में ठंडे पानी के साथ 3-3 घंटे बाद दें।
- कच्चे बेल को आग में भूनकर उसका गूदा रोगी को खिलाएं। दस्त तुरन्त रुक जाएंगे।
- जायफल पिसकर चटाने से बच्चों के दस्त रुक जाते हैं
- अर्क विसूचिकान्तक रस 5 बूंदें पानी में मिलाकर दें।
- आम की गुठली की गिरी का चूर्ण 10 ग्राम की मात्रा में दही के साथ खिलाने से अतिसार रुक जाता है।
- कच्चा आंवला पीसकर नाभि पर लेप करें।
- जामुन एवं आम की गुठली की गिरी का चूर्ण बनाकर उसमें भुनी हुई एक हरड़ का चूर्ण मिला लें। इसे 2-2 घंटे के बाद आधे चम्मच की मात्रा में सेवन करें।
- थोड़ी-सी सौंफ को तवे पर भून लें। फिर उसमें उतनी ही मात्रा में कच्ची सौंफ मिलाएं। इसमें से दो चम्मच चूर्ण मट्टे के साथ 2-2 घंटे बाद दें।
- यदि भोजन ठीक से न पचने के कारण दस्त लग गए हों तो कालीमिर्च, सेंधा नमक, अजवायन, सूखा पुदीना और इलायची-सब समान मात्रा में लेकर पीस डालें। भोजन के बाद एक चम्मच चूर्ण पानी से लें।
- बथुए के पत्तों को पानी में उबालें। अब एक कप उस पानी में शक्कर मिलाकर पी जाएं। दस्त(डायरिया) रुक जाएंगे।
- मीठे दही में दो चम्मच इसबगोल की भूसी डालकर दिनभर में तीन बार सेवन करें।
- लालमिर्च, हींग तथा कपूर-तीनों बराबर की मात्रा में पीसकर 1-1 रत्ती की गोलियां बना लें। दस्त तथा मरोड़ में रोगी को एक-एक गोली दिन में तीन बार दें।
- यदि गर्मी के कारण दस्त लग गए हों तो मक्खन निकले दूध का मट्ठा एक गिलास लें। फिर उसमें आधा ग्राम फिटकरी का फूला मिलाकर पी जाएं।
- अनार की छाल का चूर्ण 100 ग्राम तथा जीरा 50 ग्राम दोनों को पीसकर चूर्ण बना लें। एक-एक चम्मच चूर्ण दिन में तीन-चार बार लें।
2. आयुर्वेदिक उपचार
- जायफल, अफीम और खारक-तीनों 5-5 ग्राम लेकर नागरबेल के पलों में मिलाकर पोटें। फिर चने के बराबर गोलियां बना लें। दो गोली सुबह और दो गोली शाम को पानी के साथ खिलाएं।
- कुटज, जायफल, अनार के वृक्ष की छाल, अफीम, हींग, जौ और छोटी हरड़- सब उचित अनुपात में लेकर पौस डालें। इसमें से एक चम्मच चूर्ण को दो कप पानी में पकाएं। जब पानी आधा रह जाए तो काडा पी जाए।
- इसबगोल साबुत, सौंफ, बेलगिरी और सफेद चीनी समभाग, 2 रत्ती अफीम एवं दस पत्ते नीम- सभी चीजे पीसकर चूर्ण बना लें। आधा चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करें।
- सौंठ, बेलगिरी का गूदा, धनिया, सूखी राल तथा सफेद खरिया समभाग और 1 रत्ती हींग- सभी वाल्ह लेकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण सादे शरबत के साथ रोगी को दें।
- नागरमोथा, इन्द्रजौ, बेलगिरी, पठानी लोध, मोचरस और धाय के फूल- सबको बराबर की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। आधा चम्मच चूर्ण गाय के मट्टे के साथ दिन में तीन बार 3-3 माशे की मात्रा में दें।
- काकड़ासीगी का चूर्ण तथा अफीम (2 रत्ती) – दोनों चीजें एक मारी की मात्रा में शहद के साथ तीन-चार बार सेवन करें।
- केसर, अफीम और हींग-इन तीनों को समभाग में लेकर खरल1 कर डालें। यह दवा बच्चों को चटाएं।
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3. जड़ी-बूटी उपचार
- पीपल के दो पत्तों को पानी में उबालकर पत्ते निकाल दें और पानी को छानकर पी जाएं।
- नीम के दस पत्तों को आधा कप पानी में उबालें। जब पानी चौथाई कप रह जाए तो उसमें थोड़ी-सी मिश्री डालकर सेवन करें।
- तुलसी के आठ पत्ते का काढ़ा एक कप पानी में बनाएं। फिर उसे छानकर दो बार में पिएं।
- जायफल के साथ तुलसी के पत्तों का सेवन करें।
- अमरूद की कोमल पत्तियां 5 ग्राम, नीम की कोमल पत्तियां 3 ग्राम और बबूल की पत्तियां 5 ग्राम-तीनों को पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर पी जाएं।
- आम की चार कलियां सुखाकर पीस लें। फिर आधा चम्मच चूर्ण में एक चावल अफीम मिलाकर उसे पानी के साथ खाएं।
- बथुए के पत्तों को पानी में उबालकर पत्ते सहित एक कप पानी पी जाएं।
- 10 ग्राम मोंगरे की कोमल पत्तियां पानी में औटाएं। फिर चार चम्मच पानी का सेवन करें।
- शहतूत के पत्तों को पानी में उबालकर पत्ते सहित पानी पी जाएं।
4. होमियोपैथिक उपचार
- दस्त(डायरिया) या खूनी दस्त के कारण बेहद कमजोरी होने पर एल्स्टोनिया कौनसट्रिकटा दें।
- पुराने अतिसार में बैप्टीशिया 200 तथा मर्क कोर 30 दें।
- खाना खाने के बाद न पचना, अम्लता, हरा मल, बार-बार मल आना, तेज वेदना, बुखार, अस्थिरता तथा नींद न आने आदि लक्षणों में म्यूफिया दें।
- अचिकना तथा दुर्गधयुक्त हरा शौच, बार-बार दस्त, जब शौच आए तो पेट में मरोड़ हो, हर तरह के दस्त आदि में ब्रायोनिया 3 दें।
- दस्तों के साथ वायु निकलने पर अर्जेन्टम नाइट्रिकम दें।
- पुराना दस्त(डायरिया), हरा-पीला रंग, यकृत वृद्धि, अपच आदि लक्षणों में इन्सलिन दें। यदि कोई अंग्रेजी दवा लेने के बाद दस्त शुरू हो जाए तो नाइट्रिक एसिड दें।
- बच्चों को दस्त होने पर थायराइडिन 30 या 200 दें।
- यदि रोगी को बार-बार पतले दस्त आएं, दस्त बड़े वेग से निकले, कभी पेट में दर्द हो तो कभी नहीं, खाई चीजें मल में निकलें तो चायना 6 या 30 दें। हुई
- हरे रंग का मल, कै, पेट में ऐंठन आदि लक्षणों में इपिकाक 3 दें।
- यदि मल का रंग बार-बार बदल जाए, बदबूदार और लेसदार दस्त(डायरिया) हो तो कैमोमिला 6 दें।
- यदि बिना दर्द के पानी जैसे पीले दस्त हों, सवेरे रोग बढ़ जाए या बच्चों के दांत निकलते समय दस्त हों तो पोडोफाइलम 6 दें।
5. एक्यूप्रेशर उपचार
- दाएं पैर तथा बाएं पैर और सीधे हाथ की हथेली में प्रेशर दें-पैरों में छंगुली के पास और हाथ में सबसे छोटी उंगली के एक अंगुल नीचे। पेट पर नाभि के नीचे प्रेशर डालें।
- पैर में अंगूठे के पास 10-15 सेकंड तक दबाव दें।
नोट : यदि आपको डायरिया रोग लंबे समय तक बनी रहती है या गंभीर है, तो डॉक्टर से सलाह लेना उचित होगा। वे सही उपचार और सलाह प्रदान कर सकते हैं।
महत्वपूर्ण निर्देश –
हालाकि हमने ऊपर सभी तरह कि दवाइयों के बारे मे बताया है लेकिन अगर आप नीचे दिए गए निर्देशों को पालन करते है तो आपको निश्चित ही डायरिया रोग कि समस्या नहीं होगी और आप स्वास्थ्य रहेंगे –
- यदि शुरू का रोग हो तो कुछ भी न खाएं।
- भूख लगने पर अरारोट, साबूदाना, बाली, मूंग की दाल की खिचड़ी, मट्ठा तथा मछली का शोरवा लें।
- गरिष्ठ भोजन, शराब, अधिक मात्रा में नमक, खट्टी चीजें, बहुत अधिक पतली चीजें, चौलाई, बबुआ
- तथा पपीता आदि का सेवन न करें।
- फलों में आडू, सेब, अनन्नास, नीबू, संतरा, मौसमी, बेल, बेल का मुरब्बा आदि खाएं।
ऐसी ही जानकारी के लिए आप हमारी वेबएसाईट पर विज़िट कर सकते है । पोस्ट ”डायरिया क्या है ? इसके कारण, लक्षण और 20 घरेलू उपाय” कैसी लगी कमेन्ट करके जरूर बताये आपका स्वास्थ्य अच्छा रहे
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- “खरल” का अर्थ है मूसल (मोर्टार) और मूसली (पेस्टल) का वह उपकरण, जो दवाइयाँ, मसाले या अन्य चीज़ों को पीसने और मिलाने के लिए उपयोग किया जाता है। इसे हिंदी में खरल कहते हैं और इसका उपयोग विशेष रूप से आयुर्वेदिक औषधियाँ बनाने में किया जाता है। ↩︎